Book Title: Jain Dharm aur Murti Puja
Author(s): Virdhilal Sethi
Publisher: Gyanchand Jain Kota

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Page 42
________________ ३६ ऑंखें ही पानी चाहिये और न आँखों की पुतलियों को दी र उधर फिरने देना चाहिये । यदि आँखों में पानी श्रजाय तो आने दिया जावे किन्तु आंखें बंद न की जावें । इसका अभ्यास प्रातःकाल और मांयकाल दोनों समय करें । पहिले दिन जब आँखों में पानी आ जावे तब देखना बंद कर दें पश्चात क्रमशः बढ़ते २ जब १५ मिनिट तक इकटक देखते रहने का अभ्यास होजावे तब मूर्ति के सामने देखना बंद करके अपने अतरंग में दृष्टि को फेरिये । वहाँ आपको मूर्ति का प्रतिबिम्ब दिखाई देगा । उसे विशेष समय तक देखते रहने का अभ्यास कीजिये ज्यॉ २ अभ्यास बढ़ता जावेगा, वह प्रतिविम्ब उतना ही अधिक स्पष्ट भासेगा । उस समय आप उन परमात्मा के अरहंतावस्था के जीवन की घटनाओं से शिक्षा ग्रहण कीजिये और उनके गुणों के चितवन के साथ अपने श्रात्मस्वरूप का चिंतन कीजिये कि मैं अत्यन्त निर्मल, शुद्ध, अनन्त ज्ञान और अनंत शक्ति का भंडार, अनंत सुख से भरपूर, अपने मन वचन काय पर शासन करने में पूर्ण समर्थ और सर्व प्रकार के पापों और विकारों से परं हूँ । तथा दृढ़ विश्वास के साथ ज्ञानवरणी, दर्शनावरणी आदि श्रष्ठ

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