Book Title: Jain Dharm aur Murti Puja
Author(s): Virdhilal Sethi
Publisher: Gyanchand Jain Kota

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Page 65
________________ ६१ . में उमस कोई बाधा नहीं पड़ती तो उस परिवर्तन को किसी भी नरह बुरा नहीं कहा जासकता । याद गखिये : संसार का यह नियम है और इतहास इसका साक्षी है कि जो समय की आवश्यकता के अनुसार अपने ढंग का नहीं बदलत और अपनी उमी पुरानी लकीर को पाटन रहते हैं उनका अवश्य नाश हो जाता है। के के म.. पति धमानुस। वन करना हा, उनकी पूजा है तथा जल चंदन आदि अध्य और इसीतरह और भी आडम्बर जो अाजकल किया जाता है वह मय इसके लिये अनावश्यक है। जिसप्रकार परिस्थिति से लाचार होकर आपन(नियों ने ) इस आडम्बर को ग्रहण किया उसीप्रकार अब परिस्थिति बदल जाने पर उमे त्याग दन में ही बुद्धिमानी है । आप लोगों के हृदयों में यह बात बैठी हुई है कि बिना जलचंदनादि द्रव्य के सहारे पूजा होही नहीं सकती इमकारण इसमें कोई संदेह नहीं कि आप इम लग्न को पढ़ कर लेखक को पूजा का विरोधी ही ममझेंगे । किन नमक अपने आपको ऐसा नहीं समझता। यह अरहंतों की पूजा. का पूर्ण पक्षपाती है और उसके विचार से प्रत्येक आध्यात्मिक चांग के दो व्यक्ति का काय है कि वह निर्य घरहनों

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