Book Title: Jain Dharm aur Murti Puja
Author(s): Virdhilal Sethi
Publisher: Gyanchand Jain Kota

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Page 57
________________ समझ में नहीं आता कि ऐसी कौनसी आवश्यकता है जिसके लिये निमित्त कारम को हद से ज्यादा महत्व देकर असली कारण के महत्व को इतना गिरा दिया जा रहा है । अतः वर्तमान परिस्थिति में यदि वे, उन मूर्तियों के नाम पर जिनको उद्देश्य रूप से वे केवल वीतराग परिणामों की प्राप्ति के लिये ही पूजते हैं, उपासना की असलियत कोन समझ सकने से व्यर्थ की छोटी २ बातों के लिये लड़ कर बजाय वीतराग परिणाम के कषाय को मोल लेते हैं, जाति के हजारों बच्चों के, उचित शिक्षा न मिल सकेन से, खोमचे बचते फिरते रहने और पांच २ रुपये की दुकानों पर झाडू देनेकी नोकरी के लिये लालायित रहन पर भी, उनकी शिक्षा श्रादि उपयोगी कार्यों में खर्च न करके केवल मंदिरा(जहां पहिल से हा बहुत काफी रुपया होता है और सत्ताधारी पटेलों के घरू कार्यों में काम आता रहता है ) और प्रतिष्ठानों में व्यय करने में ही धर्म समझते हैं तो आश्चर्य ही क्या है ! समाज के अच्छे२ समझदार व्यक्तियों को भी आमतौर से भगवान की पूजा के लिये मंदिरों में सामग्री भेजते देखा जाता है जिसके द्वारा यातो दूसरे लोग पूजा करते हैं और या नौकर । हम पूछते हैं कि जिस पूजा का उद्देश्य अरहंतों के गुणों

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