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बने हैं। ओ लोग एक धर्म को छोड़ कर दूसरे धर्म को को ग्रहण कर लेते हैं उनमें भी बहुत से तो ऐसे होते हैं जो यातो पेट के खातिर ऐसा करते हैं (भारतवर्ष में ईसाइयों की संख्या अधिक करके इसीप्रकार बढ़ी है ) या प्राण नाश के भय से ( इस्लाम का प्रचार अधिक करके इसी प्रकार हुआ है ) या योगाभ्यास में उत्पन्न हुई मिट्टियों के नमत्कार से प्रभावित होकर (यह बात लोगों में आमतौर मे देखी जाती है कि जहां किसी माधु, महात्मा ने कुछ करामातें दिखाई कि लोग उसे पूरी श्रद्धा से देखने लगजाते हैं और उसके ' जायों पर इतना विश्वाम करते हैं कि जितना दूसरे मरने मे
मनुष्य पर भी नहीं । वे ऐसी सिद्धियों का होना सजाई का प्रमाण मानते हैं *) और या अपने श्रद्धापात्र बड़े आदमियों के अनुकरण के रूप में ऐसा करते हैं । इसलिये हमारा यह *उदाहरण के लिये खंडेलवाल जैनियों की उत्पत्ति के इतिहास पर विचार कीजिये । वह इसप्रकार हैं कि एक समय खंडेला प्रांत मॅमरी रोग फैला हुआ था। कुछ जैन मुनियों ने वहां पदापर्य किया और उनके प्रभाव से वह रोग उस प्रांत से ही मिट गया refer केवल योगाभ्यास से उत्पन्न हुई सिद्धि का प्रभा था और धर्म की सत्यता से इसका कोई संबन्ध नहीं था तथापि उन लोगों ने इसको जैन धर्म की सत्यता का प्रमाण समझा और उस प्रांत के बहुत से लोग जैनी होगये ।