Book Title: Jain Dharm aur Murti Puja
Author(s): Virdhilal Sethi
Publisher: Gyanchand Jain Kota

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Page 32
________________ जैन धर्म संबंधी दूसरे विषयों के तो हजारों संस्कृत के प्राचीन ग्रंथ उपलब्ध हैं किन्तु पूजा विषयक बहुत कम दृष्टि आते हैं, और वे भी प्राचीन नहीं । इसका कारण यह है कि प्राचीन काल में जैनियों में आजकल जैसी आडम्बर युक्त पूजन प्रचलित नहीं थी । लोग मन्दिरें में जाकर, जिनेन्द्र प्रतिमा के सामने खड़े होकर या बैठकर, अनेक प्रकार के समझ में आने योग्य स्तोत्र पढ़ते और उनके गुणों का स्मरण करते हुये उनमें तल्लीन होजाते थे। वे, आजकल की सी जल, चंदन आदि चढ़ाने की पूजाओं के द्वारा नहीं किन्तु अ भक्ति, सिद्धभक्ति आदि अनेक प्रकार के पाठों द्वारा (जिनमें से कुछ प्राचीन पाठ अभी प.ये जाते हैं), पूजा और उपासना करते थे; अथवा ध्यानमुद्रा में बैठकर परमात्मा की मूर्ति को हृदय में धारण करके उनके गुणों का चिंतवन करते हुये उनकी उपासना किया करते | किन्तु समय ने पलटा खाया और ऐसी परिस्थिति उत्पन्न हो गई जब " मैं जैनी हूँ " ऐसा करना तक आपत्ति का घर समझा जानेलगा इतिहास देखने बाल जानते हैं कि शंकराचार्य के समय में हिन्दुओं और जैनियों में विरोध भाव बहुत बढ़गया था और जैनियों का पक्ष निर्बल होता जारहा था। इसकारण उस समय में उन पर

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