Book Title: Jain Dharm aur Murti Puja
Author(s): Virdhilal Sethi
Publisher: Gyanchand Jain Kota

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Page 36
________________ स्थापित करवाना शुरू कर दिया ताकि उनका उनसे हिन्दूपन टपकता रहे तथा जैन शास्त्रों में उन मूर्तियों को मानभद्र, क्षेत्रपालादि नामों से प्रसिद्ध करके जैनियों के उन संबंधी विश्वास में जैनत्व की छाप डालदी। ___उपरोक्त प्रभाव जैनियों की उपासना पद्धति पर भी पड़े बिना नहीं रहा है । जिस प्रकार हिन्दुओं के यहाँ नैवेद्य आदि चढ़ाये जाते थे उसी प्रकार जैनियों के लिये भी, जैन धर्म के सिद्धान्तों का रङ्ग चढ़ा कर, अष्ट द्रव्यपूजा की कल्पना कांगई और उस उनमें प्रचलित क दिया । इस प्रकार यह उपासना का सविासादा ढंग धीरे २ आडम्बरयुक्त होगया और जो जिनेन्द्र न ता किसी के बुलाने से जाते पाते और न किसी के कहने से कहीं बैठते, ठहरते या नैवेद्यादि ग्रहण करते हैं उन्हें बुलाया, बिठाया जानेलगा और नैवेद्यादि अर्पण करने के बाद विसर्जनात्मक शब्दों के द्वारा विदा किये जाकर उनसे अपने अपराध क्षमा करवाना भी पूजा का आवश्यक श्रङ्ग बनगया। परन्तु निष्पक्ष दृष्टि से यदि आप विचार करें तो आप को निश्चय होजायगा कि ये बातें जैन धर्म के सिद्धान्तों से कतई मेल नहीं खाती क्योंकि वे हिन्दूधर्म की केवल एकप्रकार

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