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( ७५ ) ३१. पुद्गल के अनेक भेद कैसे बनते हैं
पुद्गलके मूल भेद दो हैं । परमाणु और स्कन्ध । परमाणु अविभागी होता है, उस में एक समय में ५ विशेष गुण झलकते हैं । ठण्डा गरम में से एक, सखे चिकने में से एक, एक रस, एक गन्ध, एक वर्ण । दो या अधिक परमाणुओं के मिलने पर स्कन्ध या बड़े स्कन्ध से छूटकर छोटे स्कन्ध बनते रहते हैं। परमाणुया स्कन्ध जब दूसरे परमाणु या कंध से बंधते हैं तब रूखे या चिकने गुण के कारण से बँधते हैं। जब चिकनाई या रूखेपन का अन्श एक दूसरे से दो अंश अधिक होगा तब रूखा खे से, चिकना चिकने से व रूखा चिकने से बँधकर एक मेल हो जायगा व जिसमें अधिक गुण होंगे वह दूसरे को अपने रूप कर लेगा। एक अंश चिकनाई
भाववन्तौ क्रियावन्तौ द्वावेतो जीव पुद्गलौ। तौच शेष चतुष्कंच षडेते भाव संस्कृताः ॥ २५ ॥
भावार्थ-जीव पुद्गल क्रियावान (चलनरूप) भी है और परिणमन शील भी है । शेष चार केवल भाववान है, क्रियावान नहीं है। अस्ति वैमाविकी शक्तिस्तत्तद् द्रव्योप जीविनी ॥७॥
(पंचाध्यायी १०%) भावार्थ--पुदगल जीव में वैमाविकी शक्ति है।