Book Title: Jain Dharm Prakash
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Parishad Publishing House Bijnaur

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Page 276
________________ (२५० ) LIVEN (REET अमेरिका व यूरोप में लोग दिन पर दिन मांस छोड़ते जाते हैं। कुछ लोग कहते हैं कि उन्डे देश में मांस बिना चल नहीं सकता, सो जिनराजदास थियोसोफिस्टने ता०२सित. म्बर सन् १९१८ को सिद्ध किया है कि वे इङ्गलैंड मे १२ वर्ष शाकाहार पर रहे और अमेरिका के चिकागो व कैनेडा में भी उन्होंने जाड़े शाकाहार पर काटे हैं तथा मांसाहारियों की अपेक्षा भले प्रकार जीवन बिताया है। जो मदिरा मांस छोड़ देगा, वह धीरे२ और भी वातों को धार लेगा । पहिले भी जैसा कहा जा चुका है कि फिर उसको निम्न : वातो का अभ्यास करना चाहिये: (१) देवपूजा (२)गुरुसेवा (३) शास्त्रपढ़ना (8) इन्द्रिय दमन या संयम (५) तप या ध्यान (६) दान । यदि किसी देश में किसी समय किसी श्रावश्यक को न पाल सके तो भावना भावे। जितना भी पालेगा, वैसा ही फल मिलेगा। प्रयोजन यह है कि इन कामों में प्रेम रखकर यथा शक्ति अभ्यास करे। वास्तवमें जो राजा जैनधर्मी होगा, वह कभी अन्यायी व निर्दयी न होगा । वह अपनी प्रजा को सुखी बनाने की चेष्टा करेंगा। यदि प्रजा जैनधर्मी होगी तो एक दूसरे को सताकर कोई काम न करेगी। वह सब खेतो वाड़ी आदि का काम करते हुए भी परस्पर नीति व दया के व्यवहार से सुख शान्ति का वर्तन रख सकती है। इस लिये हर एक देशवासी को उचित है कि इस धर्म को धारण कर आत्मकल्याण करें । Bharat * इति समाप्तम् *

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