Book Title: Jain Dharm Prakash
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Parishad Publishing House Bijnaur

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Page 263
________________ ( २३५ ) को फैलाकर व दोनों हाथों को कमर में वाँका करके लगा लेवे, उसके श्राकार के समान लोक का आकार है। एक राजू माप है, जो असंख्यात योजन को समझनी चाहिये। यह लोक पूर्व से पश्चिम नीचे सात राजू चौड़ा है। फिर घटते हुये ऊपरको मध्यमें एक राजू चौड़ा है फिर ऊपरको बढ़ता हुआ शेष आधेके श्राधेमें पाँच राजू चौड़ा है। फिर घटते हुए अन्त में ऊपरको एक राजू चौड़ा है। दक्षिण उत्तर वरावर सात राजू लम्बा है। ऊँचाई इस लोककी चौदह राजू है । इस का घनक्षेत्रफल सर्व ३४३ ( तीनसोतैंतालीस ) घनराजू प्रमाण है । इसका हिसाब इस तरह है EX७४७ ७+१ × ७×७= = १६६ धनराजू २ शेष आधे के आधे का घनफल यह है : 렐 २ शेष ऊपर का श्राधा भी १४७ है। १+७ Xx ६४७४७_ _ १४७ = २ १४७ १४७ १६६+ + = ३४३ घनराजू हुआ । २ इस लोक में पृथ्वियां है। सात नीचे हैं। उनके नाम मध्यलोक से पाताल तक रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, चालुकाप्रभा, पङ्कप्रभा, धूमप्रभा, तमप्रभा, महातमप्रभा हैं। ये एक दूसरे से कुछ कम एक एक राजू के अन्तर पर हैं तथा पूर्व पश्चिम लोक के एक ओर से दूसरी ओर तक चली गई हैं। इनकी मोटाई इन्हीं राजू में गर्भित है ।

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