Book Title: Jain Dharm Prakash
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Parishad Publishing House Bijnaur

View full book text
Previous | Next

Page 273
________________ ( २४७ ) सर्व ही चार प्रकार के देवों के श्वांस लेने व आहार की इच्छा होने का हिसाव यह है कि जितने सागर की आयु होगी उतने पक्ष पीछे श्वाँस लेंगे व उतने हज़ार वर्ष पीछे भूख लगेगी। भूख लगने पर कण्ठ में से स्वयं अमृत भर जाता है, जिससे भूख मिट जाती है। वे बाहरी कोई पदार्थ खाते पीते नहीं हैं । यह वर्णन श्री नेमिचन्द्र सिद्धांत चक्रवर्ती कृत त्रिलोकसार से दिया गया है। ८६. जैनधर्म को हर एक हितेच्छु प्राणी पाल सकता है जैनधर्म आत्मा को शुद्धि का मार्ग है, जैसा कि पूर्व में दिखाया जा चुका है । मनवाला विचारवान प्राणी, देव, नारकी, पशु या मनुष्य चाहे अमेरिकाका हो या यूरोप का, रशिया का हो या कहीं का भी हो, नीच हो या ऊँच, सब कोई इस धर्म का स्वरूप समझकर उसपर विश्वास ला सकते हैं । मूल बात विश्वास करने की यह है कि श्रात्मा शक्ति से परमात्मा है । कर्मबन्धन जड़ पदार्थ का जो संयोग है उसके मिटने पर यह आत्मा परमात्मा हो सकता है । तब अनन्तकाल तक अनन्तज्ञानी व अनन्त सुखी रहेगा । रागद्वेष मोह से कर्म का बन्ध होता है, वीतराग भाव

Loading...

Page Navigation
1 ... 271 272 273 274 275 276 277 278 279