Book Title: Jain Dharm Prakash
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Parishad Publishing House Bijnaur

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Page 267
________________ (२३६) धर लेते हैं, स्वयं ही शस्त्र रूप होकर मारते हैं। उनको भूख, प्यास बहुत लगती है । वे वहां की दुगंधित मिट्टी को खाते व वैतरणी नदी का खारी पानी पीते है, परन्तु भूख प्यास मिटती नहीं है। ये नारकी दुःख सहते और बिना आयु पूरी हुए मर नहीं सकते हैं । इनकी उत्कृष्ट आयु कम से एक, तीन, सात, दश, सत्रह, वाईस, व तेतीस सागर है। जघन्य प्राय पहले नर्क में दश हजार वर्ष है । पहले नर्क में जो उत्कृष्ट है, वह दूसरे में जघन्य है । तीसरे नर्क तक असुरकुमार देव भी जाकर नारकियों को लड़ाते है। इनके शरीरकी ऊँचाई पहले नर्क में कम से कम तीन हाथ व अधिक से अधिक सात धनुष, तीन हाथ, छ: अंगुल है। आगे के नकों में इसको दूनी २ऊँचाई अर्थात् १५ धनुष, २ हाथ १२ अंगुल, ३१ धनुष १ हाथ, ६२॥ धनुष, १२५ धनुष, २५० धनुष तथा ५०० धनुप है। खरभाग पड्कभाग में भवनवासी देवो के सात करोड़ बहत्तर लाख भवन हैं। उन हर एक में एक एक जिन मन्दिर है। ये भवनवासी निम्न दश जातियों के होते हैं: असुर कुमार, नागकुमार, सुपर्णकुमार, द्वीपकुमार, उदधिकुमार, विधु कुमार, स्तनितकुमार, दिककुमार, अग्निकुमार और वातकुमार । नारकियोंके देहभी मनुष्यके समान होते हैं,परन्तु मयावने व कुरूप होते हैं तथा देवों के शरीर भी मनुष्य समान होते हैं, परन्तु क्रियिक बड़े सुन्दर होते हैं। इन में से केवल असुरकुमार पङ्कमाग में रहते हैं।

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