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(२२३) गन्धोत्कट सेठ जव जीवन्धर वालक को घर ले गया तब उसने अन्नप्रासन क्रिया की
तस्यान्यना वणिग्वर्यः कृतमङ्गलसक्रिय । अन्नप्राशन पर्यन्ते व्यधाज्जीवधराभिधाम् ॥ २५० ॥ ()गंदक्रीड़ा भी की जाती थीउत्तरपुराण पर्व ७५ श्लोक २६२ । जीवन्धरकुमार गेंद खेलते थे(६) कन्यायें अनेक विद्यायें सोखती थीं१ उत्तरपुराण पर्व श्लोक ३२५-- गरुड़वेग की कन्यागन्धर्गदत्तावीणा बजानाजानती थी। २. उत्तरपुराण पर्न श्लोक ३४६-३५७
वैश्य वैश्ववर्णदत्त की कन्या सुरमञ्जरी ने चन्द्रोदय चूर्ण बनाया।
वैश्य कुमारदत्त की कन्या गुणमाला ने सूर्योदय-चूर्ण बनाया। दोनों वैद्य विद्या जानती थी।
(१०) दयाका उदाहरणउत्तर पुराण पणे ७५--
जीवन्धर कुमार ने मरते हुए कुत्ते पर दया कर उसे णमोकार मन्त्र दिया।
(११) पक्षी भी अक्षर सीख लेते हैंउत्तर पुराण पर्व ७५ श्लोक ४५७
गन्धोत्कट सेठ के पुत्र विद्याभ्यास करते थे, उनको देख कर कबूतर कबूतरी ने अक्षर सीख लिये।।
(१२) ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तीनों वर्ण वाले मुनि हो सकते है।