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(१३६) अच्छी तरह पालते हैं। इसी साधु पद से ही प्ररहन्त व सिद्ध पद होता है। ६६. आचार्य उपाध्याय व साधु का अन्तर
साधुओं में ही काय की अपेक्षा तीन पद हैं । जो दूसरे साधुओं की रक्षा करते हुए उन को शिक्षा देकर, उन पर अपनी आक्षा चला कर, उन के चारित्र की वृद्धि करते हैं वे साधु श्राचार्य हैं।
जो साधु विशेष शात्रों के ज्ञाता होकर अन्य साधुओं को विद्या पढ़ाते हैं वे उपाध्याय हैं।
जो मात्र साधन करते हैं वे साधु हैं।
१४ गुणस्थानों में से जो छठे सातवें गुणस्थान में ही रहते हैं वे प्राचार्य व उपाध्याय हैं जो छठे से ले कर चारहवें तक साधते हैं वे साधु हैं। ६७. जैनियों का णमोकार मंत्र व
उसका महत्व सर्व जैन लोग नीचे लिखा महामंत्र जपा करते हैं और उसको नादि मूलमंत्र कहते हैं ।
"णमो अरहन्ताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरीयाणं। एमो उवमायारणं, एमोलोए सव साह्रणम् ॥
२८ मूल गुण - घद समिदिदियरोधो लोचावस्सक मचेल मराहाणं । खिदि सयण मदतयणं, ठिदिभोयण भेय भत्तंच ॥८॥
(प्रवचनसार चारित्र)