Book Title: Jain Bal Shiksha Part 2
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 27
________________ ( २२ ) भामाशाह बड़े विनय के साथ बोले- "प्रभो! आप इस बात की तनिक भी चिन्ता न करें। देखिए, सामने क्या आ रहा है ?" महाराणा ने बड़े आश्चर्य चकित होकर देखा, कि थोड़ी देर में ही चाँदी, सोना, जवाहरात और रुपयों से लदी गाड़ियाँ वहाँ आ पहुंची। महाराणा बोले - "भामाशाह ! इतना द्रव्य ! यह सब कहाँ से लाये ?" भामाशाह ने गद्गद् कण्ठ से कहा--- महाराणा जी, यह सब मेवाड़ की और आपकी ही सम्पत्ति है । मैं तो इसका रखवाला हूं। आप सेना जमा करें और राज्य को फिर से जीतें। महाराणा की आँखों से हर्ष के आँसू गिरने लगे। उन्होंने तलवार उठाकर प्रतिज्ञा की कि जब तक मैं अपना पूरा राज्य न जीत लूगा, तब तक सोने और चाँदी के थाली में भोजन नहीं करूंगा; घास के बिछौने पर सोऊँगा और पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करूंगा। ___ अन्त में भामाशाह की सहायता से महाराणा ने अपना राज्य जीत ही लिया। भामाशाह एक सच्चा जैन गृहस्थ था। वह देश - भक्त था । अपना धर्म पालते हुए नोति से धन कमाता था और उसे देश के उद्धार के लिए खर्च करता था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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