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दिया । सचमुच में वह साँप तो भगवान् की परीक्षा लेने
नहीं था, देवता था । वह आया था । जब भगवान् डरे नहीं तो उसने प्रगट होकर कहा- "तुम सचमुच में उनका नाम महावीर पड़
महावीर हो ।" इस तरह
गया ।
जब वे तीस साल के हुए, को बाँट दिया और एक दिन छोड़कर मुनि बन गए । तप किया । तब वे तीर्थंकर एवं समदर्शी बन गए ।
तो उन्होंने अपना धन गरीबों अपना राजपाट और परिवार उन्होंने साढ़े बारह वर्ष तक घोर भगवान् हो गए । वे सर्वज्ञ
तब उन्होंने तीस साल दिया । उन्होंने कहा— तमाम समझो और किसी को मत हो । तो दूसरों को भी सुख पापी से नहीं ।"
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तक जगह जगह उपदेश प्राणियों को अपने-- जैसा सताओ । तुम सुख चाहते दो। तुम पाप से घृणा करो.
उन्होंने अहिंसा का खूब प्रचार किया हजारोंलाखों स्त्री और पुरुष जैन धर्मं को मानने लगे । उन्होंने कोई नया धर्म नहीं चलाया । वे तो चौबीसवें तीर्थंकर थे । उनसे पहले ऋषभदेव, पार्श्वनाथ आदि तेईस तीर्थंकर और हो चुके
थे । जब अधर्म अधिक
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