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विद्या
___ विद्या धन उद्यम बिना, कही जु पावै कौन । बिना डुलाए ना मिले, ज्यों पंखा को पौन ।।
करत - करत अभ्यास के, जड़मति हो सुजान ।
रसरी आवत - जात ते, सिल पर पद्रत निसान ।। सरसुति के भण्डार की, बड़ी अपूरब बात । ज्यों - ज्यों खरचै त्यों बढ़े, बिन खरचे घटिजात ।।
नहीं रूप कछ रूप है, विद्या रूप - निधान !
अधिक पूजियत रूप ते, बिना रूप विद्वान ।। विद्या धन सब धनन तं, अति उत्तम ठहराइ । छोने न कोऊ सकत है, चोर न सकत चुराइ ॥
उत्तम विद्या लीजिए, जदपि नीच पै होइ। पड़ो अपावन ठौर में, कंचन तजत न कोई ॥
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