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पढ़िवे में मन दीजिये, विद्या हो भरपूर । गुरू को सेवा कीजिए, मन तें छल करि दूर ॥
नहि धन धन है बुध कहें, चोर सकै नहिं चोर हूं,
धन में विद्या धन बड़ो, रहत पास सब काल | देय जितो बाढ़े तितो, छोर न सकत नृपाल ||
बिद्या
पातत्वाद्
विद्या वित्त अनूप | छोरि सकै नहि भूप ॥
ददाति विनयं,
विनयाद् याति पात्रताम् धनमाप्नोति,
धनाद् धर्मः ततः सुखम् ॥
- विद्या से विनय, विनय से पात्रता (योग्यता ), पवित्रता
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से धन, धन से धर्म और धर्म से सुख मिलता है ।
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