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श्रम और सहयोग उठ उठ कर लहरै गिर जाती, किन्तु किनारे तक आ जाती । तुम कहते हो जिसको सागर, बनता बूंद - बूंद से मिलकर ।।
जलधर की भी यही कहानी, धोरे - धीरे उड़ता पानी ।
कंकड़ मिल पर्वत बन जाते, दुनियाँ में ऊँचे उठ जाते ।।
तुच्छ बीज भी क्रमशः बढ़ता, फल फलों को धारण करता। रेशे - रेमे यदि मिल पाते, रस्सा वह मजबूत बनाते ।।
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