Book Title: Jain Bal Shiksha Part 2
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

View full book text
Previous | Next

Page 38
________________ श्रम और सहयोग उठ उठ कर लहरै गिर जाती, किन्तु किनारे तक आ जाती । तुम कहते हो जिसको सागर, बनता बूंद - बूंद से मिलकर ।। जलधर की भी यही कहानी, धोरे - धीरे उड़ता पानी । कंकड़ मिल पर्वत बन जाते, दुनियाँ में ऊँचे उठ जाते ।। तुच्छ बीज भी क्रमशः बढ़ता, फल फलों को धारण करता। रेशे - रेमे यदि मिल पाते, रस्सा वह मजबूत बनाते ।। [ ३३ ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54