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एक दिन सोमा की सास ने बड़ा ही भयंकर काम किया। उसने संपेरे से एक जहरीला साँप मँगाया और घड़े में बन्द करके रख दिया। दिन छिपने पर सोमा को कहा कि 'जाओ, उस घड़े में फूलमाला रक्खी है उठा लाओ।' इस तरह वह सोमा को मार कर रोज - रोज का झगड़ा खत्म कर देना चाहती थी।
। परन्तु सोमा को अपने धर्म पर बड़ा दृढ़ विश्वास था। वह उठी और घड़े के पास जाकर पहले भगवान का स्मरण किया। नवकार मन्त्र पढ़ा और फिर घड़े में हाथ डाला। ज्योंही हाथ बाहर निकाला, तो हाथ में साँप की जगह सचमुच फूलों की माला थी। सास यह देखकर हैरान हो गई। सीमा पास आकर माला देने लगी तो सास ने अलग रखवा दी। अलग रखते ही वह फिर साँप हो गया। .
- सास ने समझ लिया- "सोमा सच्ची धर्मात्मा है। भगवान् की भक्त है। इसके धर्म के प्रभाव से ही साँप फूलों को माला बन गया। सच है, धर्म से क्या नहीं हो जाता। सीताजी के धर्म के प्रभाव से धधकती हुई आग पानी बन गई थी। महासती द्रौपदी का सभा में चीर बढ़ गया था।
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