Book Title: Jain Bal Shiksha Part 2
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 41
________________ सोमा के सामने बड़ी कठिनाई आई। अब वह बेचारी क्या करे ? क्या अब अपना धर्म छोड़ दे ? नहीं, उसने सब संकट सहने मंजूर किए, परन्तु अपना धर्म नहीं छोड़ा। वह रोज सुबह उठकर नवकार मन्त्र की माला पढ़ती और सामायिक करतो । सास ने उसे बहुत रोका, बहुत बुरा - भला कहा। पर वह न मानी। सोमा ने सास से बड़ी विनय के साथ कहा"आप मुझ पर नाराज न हों। आप जो आज्ञा देंगी, जो सेवा बताएँगी, खुशी - खुशी उसको पूरा करूंगी । परन्तु अपना धर्म नहीं छोड़ सकती। दिन रात के चौबीस घण्टों में दो घड़ी भगवान का भजन करती हूं, कुछ अधिक समय तो नहीं लेती।" सोमा की प्रार्थना का सास पर कुछ असर नहीं हुआ। वह उसी तरह बकझक करती रही। कभी - कभी तो बहुत झगड़ती, मार - पीट भी करती। पर सोमा शान्ति के साथ सब संकट सहती रही। उसने बदले में सास को कभी एक शब्द भी बुरा न कहा। सोमा बहुत भली लड़की थी। गुरुदेव और पिताजी से उसने अहिंसा धर्म को बहुत सुन्दर शिक्षा पाई थी। वह शान्ति का महत्व समझती थी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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