Book Title: Jain Bal Shiksha Part 1 Author(s): Amarmuni Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra View full book textPage 4
________________ . दो शब्द - शिक्षा मानव-जीवन की उन्नति का सबसे बड़ा साधन है । किसी भी देश, जाति और धर्म का अभ्युदय, उसकी अपनी ऊँची शिक्षा पर ही निर्भर है । हर्ष है कि जैन समाज अब इस ओर लक्ष्य देने लगा है । और हर जगह शिक्षण-संस्थाओं का आयोजन हो रहा है । परन्तु लौकिक शिक्षा के साथ धार्मिक शिक्षा का, जैसा चाहिए वैसा, प्रबन्ध नहीं हो पाया है । जहाँ कहीं प्रबन्ध किया भी गया है, वहाँ धार्मिक शिक्षा का अभ्यास-क्रम अच्छा न होने से वह पनप नहीं पाया है । ___ हमारी बहुत दिनों से इच्छा थी कि यह कार्य किसी अच्छे विद्वान के हाथों से सम्पन्न हो । हमें लिखते हुए हर्ष होता है कि उपाध्याय कविरत्न श्री अमरचन्द्र जी महाराज के द्वारा यह कार्य प्रारम्भ किया है । बालकों की मनोवृत्ति को ध्यान में रखकर ही उनकी योग्यतानुसार यह धर्म-शिक्षा का पाठ्यक्रम आपके सामने है । आप देखेंगे, कि किस सुन्दर पद्धति से धार्मिक, सैद्धान्तिक, नैतिक और ऐतिहासिक विषयों का उचित संकलन किया गया है । आशा है, यह पाठयक्रम धार्मिक शिक्षा की पूर्ति करेगा । ओमप्रकाश जैन मन्त्री, सन्मति ज्ञानपीठ लोहामण्डी, आगरा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |Page Navigation
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