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सन्तों का दान
किसी नगर का एक राजा था । उसने एक दिन सन्तों को सोने की मुहरों का दान करना चाहा । उसने एक विश्वासी सेवक को बुलाया । उसके हाथ में मुहरों की एक थैली दी और कहा - " नगर में जितने सन्त हैं, उनमें इस धन को बाँट आओ ।"
सेवक सन्त की खोज में सारे दिन नगर में घूमता रहा । मगर दान लेने वाला सन्त उसको कोई न मिला । आखिर में उसने वह थैली जैसी-की-तैसी लाकर राजा के चरणों में रख दी राजा ने पूछा – “क्यों, क्या हुआ ?"
सेवक ने हाथ जोड़कर कहा – “महाराज, आपकी आज्ञा से मैने सारे नगर की खाक छान डाली, मगर कोई भी दान लेने वाला सन्त नजर नहीं आया । "
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राजा ने गरज कर कहा - "कैसी बढव बात कर रहे हो ? अनेक सन्त इस नगर में रहते
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