Book Title: Jain Bal Shiksha Part 1
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 29
________________ हैं ! फिर भी तुम्हें दान लेने वाला एक भी सन्त नहीं मिला ?" सेवक ने कहा-"महाराज, आपकी जय हो ! मैं सन्त लोगों के पास गया और आपकी इच्छा जाहिर की ! जो सच्चे सन्त थे, उन्होंने धन लेने से इन्कार कर दिया, बाकी जो थे वे धन के लोभी । उन्हें सन्त माना भी कैसे जाय ? और उन्हें दान देना आपको भी कब मंजूर है ? सेवक की बात सुनकर राजा चुप हो गया, मौन हो गया । दरअसल जो सच्चे सन्त हैं, वे धन नहीं रखते । वे धन के त्यागी होते हैं । ___ दरअसल साधुओं को धन की जरूरत नहीं होती । जैन साधु कौड़ी, पैसा, नोट आदि कुछ भी धन न अपने पास रखता है और न अपने लिए किसी दूसरे के पास रखवाता है । साधु है सो साधे काया, कौड़ी एक न राखे माया । ( २८ ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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