Book Title: Jai Jiya Kappo
Author(s): Labhsagar
Publisher: Agamoddharak Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 136
________________ कुशीलावसन्नादिस्वरूपम् 123 कोउअ भूतीकम्मं पसिणापसिणं निमित्तमाजीवी। कक्ककुरुसुमिणलक्खणमूलमंतविज्जोवजीवी कुसीलो उ।। निंदुमादिआणं तिगचञ्चरादिसु ण्हवणं करेति त्ति कोतुअं / रक्खनिमित्तं अभिमंतिअं भूति देति / अंगुट्रबाहुपसिणादि करेति / सुविणगे विजाए अक्खिअं अक्खमाणस्स पसिणापसिणं / तीतपडुप्पण्णमणागयनिमित्तोवजीवी / अहवा-आजीवी जातिकुलगणकम्मसिप्पे पंचविहे करेति / लोत्रादिकेन कल्केन जंघादि यसति / सरीरे सुरसूसाकरणं कुरुकुआ बकुसभावं करेति त्ति वुत्तं भवति / सुभासुभसुमिणफलं अक्खति / इस्थिपुरिसाण मसतिलगादिलक्खणे सुभासुभे कहेति / विविधरोगपसमणे कंदमूले कहिंति / अहवा-गब्भादाणपरिसाडणे मूलकम्मं मंतविजोहिं वा जीवणं करतो कुसीलो भवति / अथावसन्नो-बहुतरगुणापराधी / स च द्विधा-देशतः सर्वतश्च / तत्र देशतोऽयं 'आवासग सझाए पडिलेहा झाण भिक्खभत्तढे / काउस्सग्ग पडिक्कमणे कितिकम्मं चेव पडिलेहा' / / आवासग त्ति / अस्य व्याख्या - आवासगं अनिअयं करेति हीणातिरित्तविवरीतं / गुरुवयणनियोगवलायमाणो इणमो उ ओसण्णो।। अणिअयं कदाइ करेति कयाइ न करेति / हीणं वा करेइ अधिकं वा करेइ, दोसेहिं वा सह करेति / चकवाल सामायारीए सीअमाणो आवस्सगे आलोअणवेलाए नियोगत्ति चोइतो सम्म अपडिवजंतो तहो वा अकरितो वलायमाणो गुरुवयणो भवति / अन्नत्थ वा चोइओ गुरुवयणाओ घलायति / सज्झाय त्ति / सज्झायं हीणं करेति अतिरिक्तं वा करेति / अहवा न करेति, विवरीअं वा कालिअं उक्काले करेति, उक्कालिअं वा कालबेलाए करेति, असज्झाइए वा करेति / पडिलेहणाए वि एवं चेव दव्यं / पुवावरत्तकाले झाणं नो झायति / आलसिओ भिक्खं न हिंडइ, अपुवउत्तो वा भिक्खाविसोह न करेति, असुद्धं वा गिण्हति / भत्तद्व त्ति / मंडलीए कयाइ भुजति कयाइ न भुजति, मंडलिसामायार वा न करेति, दोसेहिं वा भुजति / पविसंतो निसीहि न करेति / नितो आवस्सिअं न करेति / णिताणितो न पमज्जति वा / नदिसंतरणादिसु अन्नत्थ वा गमणागमणे काउम्सग्गं न करेति. दोसेहिं वा करेति / पडिक्कमणं ति / मिच्छादुक्कडं / तं पमायखलियादिसु न करेति / संवरणादिसु कितिकम्मदाणेसु कितिकम्मं वंदणं न करेति / गुरुमाईण वा विस्सामणादि कितिकम्मं न करेति / निसी अणतुअट्टणादिद्वाणं न पडिलेहेइ / संडासयं वा निसीअंतो आदाणनिक्खेवणेसु वा न पडिलेहेइ न पमज्जति / एस देसोसन्नो गतो / इमो सव्वोसण्णो 'यु उबद्धपीठफलगो ओसन्नं संजयं विआणाहि / ठविअगरईअगभोई एमेआ पडिवत्तीओ' जो अ पक्खस्स पीठफलगादिआण बंधे मुत्तुं पोडलेहणं न करेति सो संजओ उउबद्धपीठफलगो / अहवा निच्चुत्थरिअसंथारगो उउबद्धपीठफलगो भण्णति / ठविअपाहुडिअं भुजति निक्खित्तभोई वा ठविअभोई। घंटिकरगपटलगोदिसु जो अवट्ठिअंआणेउं भुजति सो रइअभोई / अहवा इमो संखेवओ ओसण्णो भण्णति - सामायोरि वितहं ओसण्णो जं च पावई जत्थ / संसत्तो व अलंदो नडरूबी एलओ चेव / / सव्वं सामायारिं वितहं करितो ओसन्नो, जं वा मूलुत्तरगुणातिआरं जत्थ किरिआविसेसे पयट्टो पावह

Loading...

Page Navigation
1 ... 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182