Book Title: Hingul Prakaran
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek, 
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 12
________________ हिंगुल ॥५॥ Jain Educatio जोगासक्तमना नृपो मणिरथो यात्रासमं चाऽकरोत् द्रोहं मोहवशात्परंतु तदनु प्राप्तं फलं कीदृशम् ॥ ५ ॥ - पनावतीथी प्रेराएला तथा काम क्रीडाथी युक्त थरला एवा श्रीमान् कोपिक राजा, चेडा राजानी साथे मोटो रणसंग्राम कर्यो, वली मोहना वशथी जोगोमां श्रासक्त थएन' मन जेनुं एवा मणिरथ राजाए जाइनी साथे जोह कर्यो; पण तेनी पाबल तेने फल केवुं मयुं. ? ॥ ५ ॥ ( इति मैथुन प्रक्रमः ) ( अथ परिग्रह प्रक्रमः ) प्रमेहिनां विषं सर्पि-मैथुनं चकुरो गिणाम्। तद्वन्निश्शेषजंतूनां, कालकूटः परिग्रहः ॥ १ ॥ अर्थ - प्रमेहना रोगवालाने घी जेम फेररूप बे, तथा चतुना रोगीउने मैथुन जेम फेररूप बे, तेम सर्व प्राणीउने परिग्रह केररूप बे. ॥ १ ॥ यथाब्धेर्जलबिंदूनां, संख्यानैवात्र लभ्यते । तथैव धनलुब्धानां दुःखमानं न दृश्यते ॥ २ ॥ अर्थ – जेमा जगतमां समुझना पाणीना बिंडुनी संख्या मलती नथी, तेम धनना लोनीजनां | दुःखोनुं प्रमाण देखाइ शकतुं नथी. ॥ २ ॥ | अशुष्कं यदि वाशुष्क, मग्निः किं गणयेत् कदा । परिग्रह्नतस्तद्वन्, न जानते परं निजम् ३ ational For Personal and Private Use Only प्रकरणं. ॥ ५॥ ainelibrary.org

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