Book Title: Hingul Prakaran
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek, 
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 46
________________ प्रकरणं. ॥ अर्थ- पूर्वे करेलां पुण्यथी रावणना संग्राममां श्रीरामचंअजीनो महान जय थयो , तथा पुण्याढ्य राजाए उत्कृष्ट प्रताप तथा बल जे मेलव्यु , तेमां पुण्यनोज हेतु दे.॥ ५ ॥ (इति पुण्यप्रक्रमः) २॥ (अथ दानप्रक्रमः) स्याङान्म सफलं तस्य, सफलं चापि जीवितम् । यस्य वक्रे वसेन्नित्यं, दानमित्यदरयम् ॥१॥ अर्थ- जेना मुखमां " दान" एवा बे अक्षरो हमेशां वसी रह्या वे, तेनो जन्म तथा तेनुं जीवतर सफल २.१ IN|| कलत्रपुत्रसौख्यानि, स्वर्गस्य सुखसंपदः।पंचप्रकारजोगाश्च, प्राप्यते दानतो नरैः॥२॥ अर्थ- दानश्री माणसोने स्त्रीपुत्रना सुखो, स्वर्गनां सुखोनी संपदा, तथा पांच प्रकारना लोगो मले .॥२॥ वादशक्तिर्मंत्रशक्ति, स्तंत्रशक्तिस्तथैव च, नवेत्पुंसां परं मह्यां, दानशक्तिस्तुलना ॥३॥ | अर्थ- पुरुषोने वादशक्ति, मंत्रशक्ति तेम तंत्रशक्तिपण थाय जे, पण आ पृथ्वीमा दानशक्ति पुर्खन जे. ॥३॥ दानादिह महत्कीर्तिः, स्वर्गसौख्यं परत्र च।क्रमान्मुक्तिनवेदोके, श्रीश्रेयांसकुमारवत् मारपत् al अर्थ- दानथी था लोकमां मोटी कीर्ति मले ने, परलोकमां स्वर्गनुं सुख मले ने, तथा अनुक्रमे श्री श्रेयांस कुमारनी पेठे मोद मले ॥४॥ all ॥ २॥ Jan Educationa l For Personal and Private Use Only AEnelibrary.org

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