Book Title: Hingul Prakaran
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek, 
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 43
________________ अर्थ- ते श्री ब्रह्मदत्त चक्री मृत्यु पामीने जे सातमी नरके गयो, तथा त्याथी निकलीने ते जे संसाररूपी कादवमां मुब्यो, तेमां पण पापचेंज कारण जाणवू. ॥५॥ (इति पापप्रक्रमः) (अथ सम्यक्त्वप्रक्रमः) उपशामिकमेकं च, परंदायोपशामिकम् । तृतीयं दायिकं तुर्य, साखादनं च वेदकम् ॥१॥NI IN अर्थ- एक उपशामिक, बीजु छायोपसामिक, त्रीजु कायिक, चोथु सास्वादन तथा पांचमुं वेदक सम्यक्त्व जाणवू. ॥१॥ जैनधर्मे च दक्षत्वं, संस्थैर्योन्नतिजक्तयः। तीर्थसेवेति पंचापि, सम्यक्त्वजूषणानि च॥२ IN अर्थ- जैन धर्ममां दक्षता, स्थिरता, उन्नति, जक्ति, तथा तीर्घसेवा ए पांचे समकीतनां जूषणो ले॥ शंकाकांक्षाविचिकित्सा, जैनादन्यस्य संस्तुतिः। तत्संस्तवोऽपि पंचैव, सम्यक्त्वदूषणानि च ॥३॥ al अर्थ- शंका, कंखा, विचिकित्सा, जैन शिवाय अन्यनी स्तुति, अने अन्यमतनी प्रशंसा ए पांचे सम कीतनां दूषणो . ॥३॥ Jain Educatio n al For Personal and Private Use Only Malahelibrary.org

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