Book Title: Hingul Prakaran
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek, 
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 42
________________ प्रकरणं. हिगुल. अर्थ- पापथी प्राणीने कास ( खांसी ) श्वास तथा ज्वर आदिक व्याधिळ थाय ने, तथा श्रा पृथ्वीमा लातेने नागश्रीनी पेठे नीच सोबतो श्राय . ॥१॥ ॥२०॥ अमृतं कालकूटं स्या-न्मित्रंशत्रुःसुधीरधीः। सऊनो पुर्जनः पापा, हिपरीतं फलं त्विद __ अर्थ- पापश्री अमृत केर श्राय बे, मित्र शत्रु श्राय बे, उत्तम बुधिवालो निर्बुद्धि श्राय , तथा सलाऊन पुर्जन श्राय ने, एवी रीते पापथी विपरीत फल थाय . ॥२॥ गुणश्च दोषतां याति, पापतो हृच्च शून्यताम्। झानमझानतामेव, चमरोगादिव देहिनः॥३॥ अर्थ-ज्रमरोगथी जेम तेम पापथी प्राणीना गुणो दोषपणाने पामे बे, हृदय शून्यपणाने प्राप्त थाय ने तथा ज्ञान अज्ञानपणाने पामे .॥३॥ उष्टा रामा सुता पुष्टा, कुष्टाः परिजना जनाः।त्रातरो फुःखदातारः, पापानवंति सर्वदा __ अर्थ-पापथी हमेशां स्त्री, पुत्रो, तथा चाकरो पण मुष्ट श्राय बे; अने नाज़ हमेशां मुःख देनाराऊ श्राय जे.॥ ४॥ श्रीब्रह्मदत्तो नरचक्रवर्ती, मृत्वा गतः सोऽपि हि सप्तमी च । निर्गत्य तस्मान्नवपंकमग्न-स्तत्रापि हेतुः किल पातकस्य ॥५॥ ॥२०॥ Jain Education is donal For Personal and Private Use Only NDIinelibrary.org

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