Book Title: Hingul Prakaran
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek, 
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 33
________________ जाउने व्यनो त्याग करवो पड्यो ने माटे श्रा मुनीयमा कयो माणस जुगारथी धनने मेलवी शके ? IN||(अर्थात् कोइ पण न मेखवी शके.)॥५॥ (इति द्यूतव्यसन प्रक्रमः) (अथ मांसव्यसन प्रक्रमः) मांसादनात्प्रणश्यंति, देहश्रीः सुमतिः सुखम्। __ शोचं सत्यं यशः पुण्यं, श्रद्धाविश्वाससमतिः ॥१॥ अर्थ- मांस भक्षण करवाश्री शरीरनी शोला, उत्तम बुद्धि, सुख, पवित्रता, सत्य, यश, पुण्य, श्रद्धा, विश्वास तथा उत्तम गति नाश पामे ॥१॥ मांसादनाजानानां हि, जायते विन्रमो ध्रुवम् । . निर्दयत्वमशौच्यं च, उर्धीःखपरंपरा ॥२॥ अर्थ- वली मांसजक्षणश्री माणसोने खरेखर विन्रम, निर्दयपणुं, अपवित्रपणु, मुर्बुधि तथा दुःखोनी |श्रेणि थाय .॥२॥ प्रपश्यंति पशून् यत्र, मनस्तत्र प्रवर्तते।रागता मांसपुष्टे स्या,दुर्बलत्वे विरागता ॥३॥ KI अर्थ- वली मांसलुब्ध माणस ज्यां पशुने जुए चे, त्यां तेनुं मन प्रवर्ते , वली जे पशु मांसश्री पुष्ट Jain Education anal For Personal and Private Use Only library.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56