Book Title: Hingul Prakaran
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek,
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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अर्थ - चोरी करनार, चोरनी साथे गुप्त वात करनार, चोरने रहेवानु स्थानक आपनार, चोरोनुं रक्षण | करनार तथा चोरोनी साथे व्यापार करनार, एवी रीते पांच प्रकारनां चोरो कहेला बे. ॥ १ ॥ निर्दयः खरवाक् क्रूरः, शोधृष्टश्च निर्भयः। निर्दाक्षिण्यः क्रूरकर्मा, चौरस्याष्टौ गुणाः स्मृताः दयाविनानो, कठोर वचनो वोलनारो, क्रूर, लुच्चाइवालो, धीव, जयविनानो, दाक्षिणता विनानो तथा क्रूर कार्यो करनारो, एवी रीतनां आठ प्रकारना गुणो (दुषणो ) चोरना कहेला बे. ॥ २ ॥ चौरस्य पंच चिन्हानि, चमद्दृग् चंचलाननः ।
वस्त्वासक्तमना व्यग्र, इतस्ततो निरीक्षणम् ॥ ३ ॥
अर्थ- चोरना नीचे प्रमाणे पांच चिन्हो जाएवां; ते भ्रमयुक्त दृष्टिवालो, चंचल मुखवालो, वस्तुर्जमां श्रासक्त मनवालो, व्यग्र तथा श्राम तेम जोनारो होय . ॥ ३ ॥
जयं जिक्षा वधो दमः श्रृंखलापदबंधनम् । शूलिकारोपणं मृत्युः, फलानि चौरकर्मणः॥ ४ ॥ अर्थ - जय, निक्षा, वध, दंड, सांकलथी यतुं चरणबंधन, शूलिपर चडवापणुं, तथा मृत्यु एटलां चोरीनां फलो बे ॥ ५॥
ज्ञातातो विजयस्य चौर्य करणं संसारसंप्लावनं,
चान्यस्माद्वसुभूतितस्करकथां श्रुत्वा त्यज दूरतः ।
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