Book Title: Hingul Prakaran
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek, 
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 14
________________ प्रकरणं. हिंगुल. अर्थ- क्रोधयुक्त माणस दुनीयामां जाणे जूतजराएलो अयो होय नहीं जम, तेम दंड, मुष्टि आदि कना अनेक प्रहारोरूपी अनोंने करे . ॥१॥ उर्गति प्रापणे पदो, विपक्षःशुजकर्मणाम्।सपद श्रापदः क्रोधः, सकेनाजियते ततः॥२॥ अर्थ-मुर्गतिनी प्राप्तिमां पक्ष करनारो, तथा शुभकार्योनो शत्रुजूत तथा आपदानो सोबती एवो क्रोध जाने, माटे तेथी तेने कोण अंगीकार करे ? ॥२॥ IN ज्वलहलवनाति, कायःप्रायोऽति कोपिनः। मुखे डायांतरे दाहः, सर्वेषां जीमदर्शनः॥३॥ ना अर्थ-अत्यंत क्रोधी एवा माणसनुं शरीर प्रायें करीने बखता बावलसरलुं शोने जे; तथा मुखने विषे) गया, अने अंदरमा दाहवालो एवो ते जयंकर दर्शनवालो होय जे. ॥३॥ थाकरः सर्व दोषाणां, गुणानां च दवानल संकेतोऽखिलकष्टानां,क्रोधस्त्याज्यो मनीषिणा, Kol अर्थ- सर्व प्रकारनां दोषोनी खाणसरखो, तथा गुणोने बालवामां दावानल सरखो, अने सर्व मुःखोना संकेतरूप एवो क्रोध बुद्धिवान माणसे तजवो. ॥४॥ क्रोधानिनूतपुरुषा नरके व्रजेयु-स्तत्रापि तामन निबंधनमारणोत्थम् । कुःखं धनं च सदनं कृतकर्मणां च, श्रीकृष्णवजनगणाःसमुपार्जयंति ॥५॥ अर्थ- क्रोधथी पराजव पामेला पुरुषो नरकमां जाय , तथा त्यां पण ताडन, बंधन, मारण आदि ॥६॥ Jain Educational sona For Personal and Private Use Only Millelibrary.org

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