Book Title: Hingul Prakaran
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek,
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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। अथ कलह प्रक्रमः) अग्निःसूते यथा धूम,धूमः सूतेऽसितद्युतिम्।अन्यायोऽपयशःसूते,तछत्क्लेशश्चकिदिवषम् । | अर्थ- अग्नि जेम धुंवाडाने, धुंवाडो जेम श्यामकांतिने, तथा अन्याय जेम अपजशने उत्पन्न करे ,al तेम क्वेश कुःखने उत्पन्न करे . ॥१॥
स्तोकोऽप्यग्निर्दहत्येव, काष्टादिप्रभृतं धनम्। क्लेशलेशोऽत्र तच्च, वृद्धितस्तनुदाहकः॥२॥ IMI अर्थ- श्रोमो पण अग्नि जेम घणां काष्ट श्रादिकने बालेज , तेम क्लेशनो लेशमात्र पण वृद्धि पामीने |
शरीरने बाले बे.॥२॥ कलंकेन यथा चंडः, दारेण लवणांबुधिः। कलहेन तथा जाति, ज्ञानवानपि मानवः ॥३॥ | अर्थ- कलंकथी जेम चंद्र, तथा खारथी जेम लवण समुञ, तेवी रीते ज्ञानी एवो पण माणस कलहथी शोले जे. ॥३॥
आत्मानं तापयेन्नित्यं, तापयेच्च परानपि।उनयोःखकक्लेशो, यथोष्णरेणुका वितौ ॥४॥ ___ अर्थ- आ पृथ्वीमां नष्ण थएली रेतीनी पेठे क्वेश ने ते पोताने अने परने पण हमेशां ताप आपे । अने एवीरीते क्वेश बन्नेने मुःख करनारो ॥४॥
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