________________
[हिन्दी जैन साहित्य का स्थिति का सुन्दर चित्रण हुआ है । फलतः यह एक सुन्दर ऐतिहासिक रचना है। ___२. ज्ञानपंचमी चउपई मगधदेश में विहार करते समय जिन उदयगुरु के शिष्य और ठकर माल्हे के पुत्र विद्धणू ने संवत् १४२३ में रची थी । यह एक धार्मिक रचना है । इसमें श्रुतपंचमी व्रत का माहात्म्य दर्शाया गया है। उदाहरण देखिये
"चिंतासायर जबि नरु परइ , घर धंधल सयलइ वीसरह । कोहु मानु माया मद मोहु , जर संपे परियउ संदेहु । दान न दिमउ मुनिवर जोग , ना तप तपिउ न भोगेउ भोगु । सावयघरहि लियउ अवतार , अनुदिनु मनि चिंतहु नवकारु ।"
इस छंद में प्रचलित श्रावक के धार्मिक कर्तव्य का संकेत होता है। निस्सन्देह कवि ठीक कहते हैं कि चिन्तासागर में पड़ कर पुरुष घर के समस्त धंधों को भूल जाता है । क्रोध, मान, माया, मद, मोह में यह जलता है और सन्देह में पड़ता है । इसलिए ही वह मुनिवरों के योग्य न दान दे सकता है, न तप तपता है और न भोग ही भोग सकता है। कवि कहते हैं कि यदि श्रावक के घर जन्म लिया है तो आये दिन नमोकार मंत्र का चिंतवन करो। श्रावक को मुनियों को दान देना चाहिये, इन्द्रियों का निग्रह करना चाहिये और जिनेन्द्रदेव की उपासना में समय बिताना चाहिये।
३. 'धर्मदत्तचरित्र' का उल्लेख प्रेमीजी ने मिश्रबन्धुओं के इतिहास के आधार से किया है। इसे सं० १४८६ में दयासागर सूरि ने रचा था।
सोलहवीं शताब्दि में साहित्यप्रगति को कुछ उत्तेजना मिली