Book Title: Hindi Jain Sahitya ka Sankshipta Itihas
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 267
________________ २४८ [हिन्दी जैन साहित्य का ___ अर्थात्-"गुजरात देश के मध्य में 'पल्हणपुर' नामक एक विशाल नगर था। वहाँ राजा वीसलदेव राजा करते थे,जो पृथ्वी के मंडन और सकल उपमाओं से युक्त थे । उसी नगर में निर्दोष पुरवाड़ वंश में जिसमें अगणित पूर्वपुरुष हो चुके हैं 'भोवई' नाम के एक राजश्रेष्ठि थे जो जिनमक और दयागुण से युक्त थे।" अंत्यप्रशस्ति में कवि ने आगे बताया है "गुजर पुरवादसतिलउ सिरि सुहबसेट्टि गुणगणणिलउ । तहो मणहर छायागेहणिय सुहहादेवी णा भणिय । तहो उवरि जाउ बहु विणयजुलो धणवालु वि सुउणामेण हुभो। तहो विणि तणुम्भव विउलगुण संतोसु तह य हरिराउ पुण । अर्थात्- “उनके ( भोवई के) उस पुरवाड़ वंश में तिलकरूप श्री सुहवेष्ठि हुये, जिनकी गृहिणी का नाम सुहड़ा देवी था। वही धनपाल कवि के माता पिता थे। धनपाल का जन्म उनके उदर से हुआ था। वह विनययुक्त थे। उनके दो भाई संतोष और हरराज भी विपुल गुणों के धारक थे। कवि के गुरु गणि प्रभाचंद्र थे, जिन्होंने मुहम्मदशाह तुग़लक के मन को रंजित किया था और विद्याद्वारा वादियों का मन भग्न किया था। (महमंदसाहि मणु रंजिउ, विजहिं वाइय मणु भंजियउ।) कवि धनपाल ने गुरु की आज्ञा से सूरीपुर और चंदवाड़ के तीर्थों की बन्दना की थी। अपने 'बाहुबलिचरित्र' को कवि ने संवत् १४५४ में रचकर समाप्त किया था। इस प्रन्थ को उन्होंने चंद्रवाई नगर के प्रसिद्ध रामश्रेष्ठि और राजमंत्री साहू वालाधर की प्रेरणा से रचा था, जो जैसवाल वंश के भूषण थे।

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