________________
८.
[हिन्दी बैन साहित्य का संघी की आम्नाय में थे, जिनका सम्बन्ध माथुरगच्छ. और पुष्करगण से था। उनकी रची हुई चार रचनायें उपलब्ध हैं(१) पंचाध्यायी, (२) लाटी-संहिता, (३) जम्बूस्वामिचरित्र
और (४) अध्यात्मकमलमार्तण्ड । कवि राजमल्लजी की पाँचवीं रचना 'छन्द शास्त्र' अथवा 'पिंगल' का पता अभी चला है, जिसका उल्लेख हम पहले कर चुके हैं। यह रचना ही कविजी की केवल हिन्दी में है, यद्यपि इसमें भी संस्कृत और अपभ्रंश प्राकृत का समावेश किया गया है। उस समय की साहित्यिक प्रगति और शैली का इसे प्रतिबिंब ही समझना चाहिये । यही नहीं, इसमें शाह अकबर के समय की कई ऐतिहासिक वार्ताओं का भी उल्लेख है । इसको उल्लेख करते हुये हिन्दी भाषा के छन्दशास्त्र को पूर्ण उद्धृत करने का लोभसंवरण हम नहीं कर सके हैं, जो परिशिष्ट रूप में दिया जा रहा है। उसमें ऐसे कई छन्दों के उदाहरण दिये हैं जो अनूठे हैं। उनकी रचना प्रसाद-गुण से समलंकृत है और कवि राजमल्लजी को इस शताब्दि का श्रेष्ठ कवि ठहराती है । इस 'पिंगल' में अपभ्रंश हिन्दी-मिश्रित भाषा के भी छन्द हैं, जो भाषाशास्त्र की दृष्टि से महत्त्व की वस्तु हैं। उनके कुछ उदाहरण देखिये, जिनको हम 'पिंगलशास्त्र' की उस एक मात्र हस्तलिखित प्रति से उद्धृत कर रहे हैं जो श्रीदि० जैन सरस्वतीभवन, पंचायतीमन्दिर, मसजिद खजूर, देहली में (नं०३) विद्यमान है
"गयंद-राजि-गजिय, समाजि-चाजि-सज्जियं । दिस-णिसान-वजिय, चमू-समूह-धाइयं ॥ कमाण-वाण-धारियं, कृपाण-पाणि-नारियं । दुषण हकारेयं, रजो गगण गाइवं ॥