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[ हिन्दी जैन साहित्य मा
इय पास जिणवर नयण मणहर, कप्पतरुवर सोहए । श्री नयर खयराबाद मंडण, भविय जण मण मोहए ॥ श्री कनक तिलुक सुसीस सुंदर, लिक्ष्मी विनह मुणीसरो । तसु सीस गणिक्षांतिरंग पभणइ, हवइ दिन दिन सुषकरो ॥" श्री पाश्र्वजिनस्तवन - छोटा-सा दर्शनस्तोत्र है | देखिये उसकी रचनाशैली यह है
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" पास जी हो पास दरसण की बलि जाइयै; पास मनरंगे गुण गाइये । पास बाट घाट उद्यान मैं, पास नागे संकट उपसमै । पा० । उपसमै संकट विकट कष्टक, दुरित पाप निवारणो । आणंद रंग विनोद वारू, अर्षे संपति कारणो ॥ प० ॥
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देवाधिदेव तृलोक 'रौ स्वामी कृपा घणी । श्री गुणसागर कर जोडि विनवै पूरो आस्या मन तणी ॥ " 'श्री गौतम स्तोत्र' के प्रारंभिक छन्द इस प्रकार कमलाकइवासो, गुणरासो ।
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"वीर जिणेसर चरण कमल पणमधि पक्ष णिसि स्वाम साल गोयम मणु संणु वणइ कंत करिवि निसुणो भो भविया; जिम निवसइ तुम देह गुणगण गह गहिया ॥ १ ॥ जंबुदीव सिरि भरह पित षोणी तलु मंडण, मगधदे सेणी नरेस
रिब-दल-बल-पंडण |
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धणवर गुवर गाम नाम जिह जिण गुण सिक्ता; विप्र वसह वसभूय तच्छ तसु पुह वीभक्ता ॥ १ ॥"
अंतिम छंद पन्ना फट जाने से अप्रकट है ।
इस प्रकार इस गुटका में दिये हुए हिन्दी भाषा के स्तवनों का परिचय है । इन स्तवनों में विशेषता यह है कि इनमें जिन