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वित इतिहास ___ श्री स्तंभनपार्श्वनाथस्तोत्र एक प्रसादपूर्ण रचना है, जो तीस छन्दों में पूर्ण हुई है। यह रचना पार्श्वनाथ भगवान की उस मूर्ति को लक्ष्य करके रची गई है जो स्तंभनपुर में विराजमान थी। इसके उदाहरण देखिये
"जय तिहुयण वर कप्परुक्ख, जय जिण धन्नंतरि । जय तिहुयण कल्लाण कोस, दुरिय करिणेसरि ॥ तिहुयण जण अवलंधियाण, भुवणत्तय सामिय । कुणसु सुहाई जिणेस पास, थंभणयपुरट्ठिय ॥ १॥ तई समरंति लहुंति भत्तिवर पुत्तकलत्तई । धन्न सुवन हरिण पुण्ण जण भुजई रजहिं ॥ पिरकइ मुरक असंख सुख तुह पास पसायण । इय तिहुयण वर कप्प सरक सुरकह कुण मह जिण ॥ २ ॥
एय महारिय जत्तदेव किं न्हवण महुसव, जं अणलिय गुण गहण तुम्ह मुणिजण अणसिद्दउ । एम पसीय सपासनाह भणयपुरठिय,
इय मुणिवर सिरि अभयदेव विनवइ अणंदिय ॥ ३० ॥" श्रीखैराबाद पार्वजिनस्तवन-एक छोटा-सा स्तोत्र खैराबाद में स्थित पार्श्वजिन की प्रतिमा को लक्ष्य करके लिखा गया है। यथा
"पास जिणंद पइराबाद मंडण, हरषधरी नितु नमिस्य हो । रोर तिमर सब हेलिहिं हरस्य, मन वंछित फल वरस्यं हो। भुवण विसाल भविक मन मोहइ, अनुपम कोरणि सोहा हो। सुर नर किंनर नाग नरेसर, पणमइ प्रह सम पाया हो।