Book Title: Hetvabhas Savyabhichar
Author(s): Gangadhar Pandit
Publisher: Gangadhar Pandit
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गादा. १४
साध्य संशय जनक तयो कसमूहालंबनो पस्थिति बृत्ये कतर जनकताय साध्य प्रकारचा भाव विशिष्टो पस्थिति वृत्तिल तद धृत्तित्वयों रस वेन नाति प्रसंग | व्यभिचारे तु तादृश जनकता व्याप्य जन्यता निरूपित जनकता द्वया वच्छेदक प्रकारता मादाय लक्षण समन्वयः ॥ ज्ञान जन्य वन्यभावोपस्थिते रपि वन्हिमद् व्यावृत्त धर्मवत्ता ज्ञान जन्य वन्हयुपस्थिति सहकारेण संशय जनकत्वात् तादश ज्ञानीय धूम प्रकारताया वन्हि साहचर्या वच्छिन्नत्वेन संशय जनक वन्युपस्थिति जनकतायां वन्हयभाव वव्यावृत्तत्वा वच्छिन्नत्वेन च तथाविध वन्यभावोपस्थिति जनकतायां तादृश ज्ञानीय जलत्व प्रकारतायाश्च वन्हिमव्यावृत्तत्वा वच्छिन्नत्वेन तथाविध वन्युपस्थिति जनकतायां वन्यभाव वदृत्तित्वा वच्छिन्नत्वेन च तथाविध वन्यभावोपस्थिति जनकताया मवच्छेदकत्वात् । मैवम् । साध्य विषयकत्व घटित धर्मावच्छिन्न जनकता वच्छेदको योधर्म स्तदवच्छिन्न जन्यता| निरूपितायां तदवच्छिन्न सहकारिता वच्छेदक साध्याभाव विषयकत्व घटित धर्मावच्छिन्न जनकतावच्छेदकावच्छिन्न जन्यता निरूपितायांच जनकताया मवच्छेदकीभूत प्रकारता निवेशेहि नाति प्रसंग(१)स्तदवच्छिन्न सहकारिता वच्छेदकत्वंच तदवच्छिन्ना समवधान प्रयुक्त फलोपधायकत्वा भाववत् स्वावच्छिन्नकत्व मित्यलं पल्लवितेन नचेति वाच्यमिति परेणान्वयः तत् संशय धर्मिताव च्छेदकेदत्वादिकं असाधारणतयेति संशय विषय मात्र वृत्तित्वेन सपक्ष विपक्ष व्यावृत्तत्वा दितिभाव : संग्राह्यमेव संशय दशायां सव्यभिचार सामान्य लक्षण लक्ष्यमेव तथाच संशय दशायां लक्ष्यतयैव नातिव्याप्ति संभव : तदवच्छिन्न साध्यादि निश्चय दशायां च तत्प्रकारक ज्ञानस्य संशयाऽजनकतया संशय जनकता घटितस्य लक्षणस्यै तत्साधारण्यं न संभवतीति हृदयम् (२)
(१) टिप्पणी-तद बच्छिन्ना समवधाने त्यादि ना व विरूद्वेप्य तिव्याप्ति वारणं बोध्य ॥ (२) टिप्पणी-इदंतु बोध्यं । यत्र पर्वतत्वादे पक्षता वच्छेदकता तत्र पर्वतत्वा दि सामानाधिकरण्येन साध्य निश्चय दशाया मपि असाधारण्या
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