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वृद्धानुग
गुरुवाणी-३ धारण करके बैठे रहते हैं। आज देश भी युवक वर्ग के हाथों में होने के कारण बरबादी के मार्ग पर जा रहा है। राज करने वाला व्यक्ति स्थिर चित्त का होना चाहिए अथवा युवक भले ही हो किन्तु गुणवृद्ध या ज्ञानवृद्ध होना चाहिए। मन्त्री पद के लायक कौन?
एक राजा था। उसके मन्त्री मण्डल में कितने ही युवक थे और कितने ही वृद्ध भी थे। युवक मन्त्री मण्डल ने एक बार राजा से कहा - ये वृद्ध लोग पूर्ण रूप से बेकार हैं। आपके राज्य में इनकी क्या जरूरत है? इनको निकाल देना चाहिए। व्यर्थ में वेतन लेते हैं। राजा यह सब सुनकर चुप रहता है। उस पर वृद्धों की संगत का असर होने से स्थिर चित्त वाला था। राजा ने सोचा कि ये लोग रोज बकवास करते हैं इसीलिए इनको शिक्षा देनी चाहिए कि वृद्धों की क्यों जरूरत है? इसीलिए एक दिन परीक्षा के लिए उसने राज्य सभा में युवक मन्त्री वर्ग से एक प्रश्न पूछा- मेरे सिर पर लात मारे उसको क्यों शिक्षा देनी चाहिए? युवक वर्ग तो बिना विचार ही बोल उठा कि उसके तलवार से टुकड़े-टुकड़े कर देने चाहिए। किसी ने कहा कि उसको फांसी पर लटका देना चाहिए। किसी ने कहा कि इसको जिन्दा ही आग में डाल देना चाहिए। तत्पश्चात् राजा ने वृद्ध मन्त्री से पूछा - इस सम्बन्ध में आपके क्या विचार हैं? वृद्धों ने विचार कर कहा - हे राजन् ! आपके सिर पर लात मारने वाले को तो स्वर्ण हो और हीरों से मढ़ देना चाहिए अर्थात् उसका सम्मान करना चाहिए। राजा ने कहा - साधु, साधु....! क्योंकि वृद्धों ने पहले तो यह विचार किया कि राजा के मस्तक पर लात कौन मार सकता है? रानी या राजकुमार के अतिरिक्त किसी की शक्ति नहीं है। इसीलिए उनका तो हीरे, मोतियों से सम्मान करना ही चाहिए। राजा ने युवक वर्ग के मन्त्रियों को कहा कि देखो, इस प्रकार विचार करके ही उत्तर देना चाहिए। तुम लोग मन्त्री पद के योग्य नहीं