Book Title: Guru Vani Part 03
Author(s): Jambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
Publisher: Siddhi Bhuvan Manohar Jain Trust

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Page 262
________________ २४० लब्धलक्ष्य गुरुवाणी-३ सन्त कबीर ने एक भजन में लिखा है जब मैं सन्त के मार्ग पर चलने लगा तंब घर के सजनों ने और लोगों ने बहुत विरोध किया। कबीर बिगड़ गया है, कबीर बिगड़ गया है.... सब लोग बोलने लगे। तब कबीर ने एक भजन बनाया। कबीरा बिगड़ गया, कबीरा बिगड़ गया छाछ के संग से दूध भी बिगड़ा, बिगड़वा बिगड़वा में घृत तो भयोरी.... पारस के संग से लोहा भी बिगड़ा, बिगड़वा बिगड़वा में कंचन तो भयोरी.... साधु के संग से कबीरा भी बिगड़ा, बिगड़वा बिगड़वा में सन्त तो भयोरी अर्थात् छाछ के संग से दूध बिगड़ा और बिगड़ने के बाद हाथ में क्या आया? मक्खन! पारसमणि के संग से लोह खण्ड बिगड़ा किन्तु कंचन तो हाथ में आया न! वैसे ही साधु की संगति से कबीर भले ही बिगड़ा हो किन्तु बिगड़ने के बाद सन्त तो हुआ न! कैसी मस्ती....! जीवन में संकल्प करोगे, लक्ष्य बांधोंगे तो ही प्रभु प्राप्त होंगे। . दूसरे के पास से कुछ भी लेने की इच्छा वाला मनुष्य हल्का कहलाता है। आश्चर्य है कि ऐसे हल्के (स्पृहावाले) मनुष्य भव समुद्र में (हल्के होने पर भी) डूब जाते हैं। हांसी करे घरडां तणी, समजण विनाना मशकरा। समझे नहीं के काल करशे, आपणी पण आ दशा॥

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