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गुरुवाणी-३
दीपावली पर्व जाए तो आसमान और जमीन का फर्क पड़ता है। जैन दर्शन भले ही मृत सिंह के समान हो किन्तु उसकी तुलना में कोई भी दर्शन नहीं आ सकता। दूसरे धर्मगुरुओं के पास जाकर पूछोगे तो कहेंगे तुम्हारा आचार बहुत कठोर है। रात में खाना-पीना नहीं, खुले पैर चलना, कोई भी वस्तु को स्वयं पकाना नहीं.... कितना दुष्कर है। परदर्शन को भय देने वाला है। मुट्ठी जितना जैन समाज है, तब भी उसकी तुलना में कोई भी समाज नहीं
आ सकता। एक भी जैन भेड़, बकरी या गाय-भैंस रखता है क्या? नहीं, किन्तु उनके पीछे करोड़ो रुपये खर्च करते हैं न! पांजरापोल चलाते हैं। दूसरे कहीं भी पांजरापोल देखने को मिलती है क्या? इतना छोटा समाज होते हुए भी सभी समाजों में इसका महत्त्व है। इस समाज के दान, शील, तप और भाव उत्तम कोटि के हैं।
६. छट्ठा स्वप्न - छठे स्वप्न में कमल की उत्पत्ति सरोवर में होती है। उसके स्थान पर कमल की उत्पत्ति मलिन कचरे में देखी।
। भगवान् कहते हैं कि काल ऐसा गिरा हुआ आएगा कि महापुरुष उत्तम कुल में जन्म लेने के स्थान पर मध्यम अथवा नीच कुल में जन्म लेंगे। आज देखो न बड़े-बड़े धनवान हैं, वे धन पर लेटते हैं और आकाश में उड़ते रहते हैं। धर्म तो मध्यम वर्ग के पास ही रहा है ना! अधिकांशतः सन्त पुरुषों को देखोगे तो वे मध्यम अथवा नीच कुल में ही मिलेंगे। उत्तम कुल में तो सभी लोग भोगपरायण हो गए हैं, आसक्ति परायण बन गए हैं। यह काल का ही प्रभाव है न! देखोगे तो, पूर्व में तीर्थंकर इत्यादि उच्च कुल से ही आते थे!
७. सातवाँ स्वज - साँतवें स्वप्न में बंजर भूमि में किसान को बीज बोते देखा। पात्र और अपात्र का विचार किए बिना ही दान देने वाला वर्ग होगा। किसी समय में लोग नर्तकियों को लाखों रुपया दान देते थे।
८. आँठवाँ स्वज - आँठवें स्वज में आभाहीन स्वर्ण का कलश देखा। कलश पर मिट्टी जमी हुई थी। ज्ञान-दर्शन-चारित्र की आराधना करने वाले साधु पुरुषों को छोड़कर लोग सामान्य साधु की पूजा