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दीपावली पर्व
गुरुवाणी-३ भगवान् को विराजमान भी किया था। धर्मिष्ठ, नम्र और उदार श्रावकों में अग्रगण्य थे। ऐसा धर्मनिष्ठ श्रावक भी कान्हजी स्वामी के सम्पर्क में आया, उसके विचार बदल गए। समस्त उपकरणों और ज्ञान भण्डार को उन्होंने अर्पित कर दिया। इतना ही नहीं किन्तु उनका दिमाग इतना घूम गया कि उन्हें लगने लगा कि मैंने भगवान को विराजमान कर बहुत बड़ी भूल की है। घूमने को निकलते तो कुत्ते को साथ लेकर निकलते ! उनका सारा जीवन ही भ्रमित हो गया। ऐसे अच्छे-अच्छे श्रावक भी धर्म से विमुख बन जाएंगे। यह तीसरे स्वप्न का फल है।
४. चौथा स्वप्न - चौथे स्वप्न में कौओं को देखा। वे साफ पानी से भरी हुई बावड़ी को छोड़कर अशुचि वाले पानी से भरे हुए छोटे गढ्ढे पर जाकर बैठ गए। भगवान् कहते हैं कि पञ्चम काल में अच्छे से अच्छे साधु भी अपने वृद्ध वर्ग को छोड़कर दूसरों के साथ चले जाएंगे। यहाँ तो यावज्जीव गुरुकुलवास में ही रहने का है। उसके स्थान पर गुरु को छोड़कर अपनी दुकानदारी जमाएंगे। गुरु की उपस्थिति में आगे बढ़ने का अवसर नहीं है इसलिए गुरु से अलग रहकर विचरण करेंगे। श्रावक भी उत्तम में उत्तम ज्ञान जहाँ परोसने में आता हो उसको छोड़कर अलीबाबा चालीस चोर जैसी वार्ताएं सुनने को पहुँच जाएंगे। एक युग था। श्रावक को पूछा जाता था कि क्या-क्या सुना है? तो वह कहता कि अमुक साधु महाराज के पास से मैंने आचारांग सूत्र सुना है, अमुक महाराज के पास से उत्तराध्ययन सुना है और अमुक के पास से भगवती सूत्र सुना है। आज शास्त्रों की बातें सुनने वाले बहुत कम हैं और सुनाने वाले भी कम हैं। सबको हास्यरस चाहिए।
५. पाँचवाँ स्वज - पाँचवें स्वप्न में मरे हुए सिंह को देखकर लोग भयभीत होते हैं। भगवान् कहते हैं कि जिनेश्वर भगवान् का दर्शन सिंह के समान है। आज वह भले ही नष्ट हो रहा हो, भंग होने पर भी भरुच कहलाता है। मरा हुआ भी सिंह ही है न! जैन दर्शन का नवदीक्षित साधु और अन्य दर्शन का बहुत पुराना संन्यासी यदि दोनों की तुलना की