Book Title: Guru Vani Part 03
Author(s): Jambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
Publisher: Siddhi Bhuvan Manohar Jain Trust

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Page 274
________________ २५२ ज्ञान- पञ्चमी गुरुवाणी - ३ पूंजी में से दस-बीस हजार कम कर दिए । अन्य किसी प्रकार का फायदा हुआ क्या.... इस वर्ष का यह प्रथम पर्व आकर खड़ा है...... पहले गौतमस्वामी को केवलज्ञान और फिर आता है ज्ञानपञ्चमी का पर्व । संवत्सरी के समान ही ज्ञान पञ्चमी की महिमा है.... हम तो ज्ञान को सजा कर पूजन करते हैं, खमासणा देते हैं और काऊसग्ग करते हैं, इतने से ही हमारी पूजा पूर्ण हो जाती है। यह तो बाह्य पूजा हुई लेकिन हमने प्रतिवर्ष ज्ञान के लिए क्या और कैसा उद्यम किया। आजकल माता-पिता अपने छोटे लड़के को मार-मारकर धमकी देकर स्कूल में छोड़ आते हैं। यह सोचकर की यह पढ़ेगा नहीं तो इसका क्या होगा..... संसार को सुखी बनाने के लिए ज्ञान आवश्यक है। यदि तुम्हें ऐसा लगता है तो भवोभव को सुखी करने के लिए सम्यक् ज्ञान की कितनी आवश्यकता है? ज्ञान पञ्चमी के दिन दो वस्तुएं समझनी है । १. ज्ञान की आशातना और २. ज्ञानी की आशातना से बचो । ज्ञान की बहुत आशातना हो रही है । भयंकर आशातना - अवहेलना हो रही है । इसी कारण प्राणी अनेक यातनाओं से पीड़ित होता है । पत्रिका में देखों तो भगवान का फोटो और गुरु महाराज का फोटो और फिर ये फोटो पैरों से रौंदे जाते हैं । फोटुओं को फाड़ नहीं सकते । पानी में विसर्जन करते हैं तो भी आशातना होती ही है। आकाश फटे उसे कहाँ-कहाँ सांधे? ज्ञान का बहुमान करो। प्रजा ने सरकार को शस्त्र अर्पित किए। प्रजा निर्बल बनी और साधुओं को शास्त्र सौंपे। मन्दिर की तिजोरी में रहे हुए नोटों की कीमत अधिक है या उसमें रहे हुए आभूषणों की कीमत अधिक है या ज्ञान भण्डारों की कीमत अधिक है। महाराजा कुमारपाल ने ७० वर्ष की अवस्था में भी संस्कृत पढ़ना प्रारम्भ किया था और संस्कृत में काव्य लिखते थे । ज्ञान यह आत्मा का मुख्य गुण है। भक्ष- अभक्ष्य का ध्यान ज्ञान से ही आता है न !

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