Book Title: Guru Vani Part 03
Author(s): Jambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
Publisher: Siddhi Bhuvan Manohar Jain Trust

View full book text
Previous | Next

Page 260
________________ लब्धलक्ष्य गुरुवाणी - ३ धर्म के योग्य श्रावक का २१ वाँ गुण है लब्धलक्ष्य..... मनुष्य को सामान्य वाणी में भी लक्ष्य बांधकर चलना पड़ता है। घर के बाहर निकलते ही यदि लक्ष्य न बांधा हो तो कौनसी दिशा में जाओगे? जाने का मुम्बई हो और गाड़ी को कच्छ की तरफ दौड़ाओगे, तो क्या मिलेगा? केवल क्लेश ही मिलेगा न । दिन के सामान्य व्यवहार में भी लक्ष्य बांधकर जीने का होता है, जो जीवन में सच्चा लक्ष्य बांधे बिना ही जीवन पूर्ण कर दें तो अन्त में क्या मिलेगा ? सारी जिन्दगी क्लेश- युक्त जीवन और अन्त दुर्गति । २३८ हमारा लक्ष्य कौनसा है ? पैसा कमाने का, मान कमाने का, इज्जत कमाने का, बस यहीं लक्ष्य में हमारा जीवन रङ्गा हुआ है तो कितने ही सामान्य मनुष्यों का लक्ष्य देखोगे तो इसको पछाड़ना है और इसको मारना है। आज राजकारणों में क्या चल रहा है यही न! एक कुर्सी पर आता है तो दूसरा उसको पछाड़ने का प्रयत्न करता है । पहले उसको आधार देते हैं और फिर खेंच लेते हैं। धन का लक्ष्य मनुष्य को धन तक पहुँचाता है। बहुत से लोग धन अर्जित करने के लिए अमेरिका जाना पड़े तो वहाँ जाने के लिए तैयार हैं। लंदन जाते हैं, अफ्रीका जाते हैं क्योंकि उन्होंने अपना लक्ष्य बांध रखा है कि मुझे धन कमाना है। टाटा, बिरला के समान बनना है । लक्ष्य बांधने के पश्चात् मनुष्य उस दिशा में गति करता है। धन कमाओ इसके लिए ना नहीं हैं क्योंकि धन होगा तो निश्चिन्त होकर धर्म कर सकोगे । इसीलिए जयवीयराय सूत्र में भगवान् से इष्टफल सिद्धि की याचना की जाती है किन्तु यह इष्टफल केवल तिजोरी भरने के लिए नहीं पेट भरने के लिए है। संतोष होना चाहिए, संतोष के बिना कभी भी तुम्हारी इच्छाएं रुक नहीं सकती। सफल होने के लिए पाँच कारण कोई भी लक्ष्य बांधों तो उसमें सफल होने के लिए पाँच वस्तुएं जरूर याद रखें। पहला प्रणिधान - प्रणिधान अर्थात् संकल्प, यह मुझे प्राप्त करना है । तुम्हारा यह संकल्प है कि मुझे किसी भी प्रकार धन प्राप्त

Loading...

Page Navigation
1 ... 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278