Book Title: Guru Vani Part 03
Author(s): Jambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
Publisher: Siddhi Bhuvan Manohar Jain Trust

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Page 259
________________ लब्धलक्ष्य कार्तिक वदी १० महापुरुष कहते हैं कि सभी अवस्थाओं में धर्म आवश्यक है। वृद्धावस्था कि अपेक्षा भी युवावस्था में तो धर्म की अत्यन्त आवश्यकता है क्योंकि बड़ी उम्र में बुद्धि परिपक्व होने के कारण मनुष्य प्रत्येक कार्य विचार करके करता है किन्तु युवावस्था में मदोन्मत्त बनकर मनुष्य कार्यअकार्य में देखे-विचारे बिना ही कूद पड़ता है। अतः धर्म की सच्ची आवश्यकता युवावस्था में है। युवावस्था में किया हुआ धर्म वृद्धावस्था में भी मनुष्य को सुख और शान्ति देता है। भगवान की दया अर्थात् क्या? ___ जीवात्मा की दृष्टि इस लोक तक ही सीमित है। शास्त्रकार कहते हैं कि इस लोक के अतिरिक्त दूसरा भी एक लोक है, जहाँ हमें जाना है। अधिकांशतः लोग तो केवल बंगला, गाड़ी और पुत्रों में ही स्वयं के जीवन को सफल मानते हैं। यदि कोई पूछता है कि भाई कैसे हो? तो उत्तर देगासाहेब भगवान की दया है, घर है, पुत्र हैं, पुत्र वधुएं हैं, धन-वैभव है और मान-सम्मान है, बस इसी को भगवान की दया मानकर संतोष से जीवन व्यतीत करते हैं, किन्तु आँखे बंद होने पर क्या होगा? मैं कहाँ जाऊँगा? इसका कोई विचार नहीं करता। महापुरुष कहते हैं कि जहाँ भगवान की ऐसी दया है, तो अधिक से अधिक धर्म भी करना चाहिए। शालिभद्र को क्या कमी थी? मनुष्य होने पर भी दैवी भोगों को भोगते हुए भी उनको इस सुख में कमी दिखाई दी। इसीलिए तो भगवान् की वाणी सुनते ही निकल पड़े। संसार दुःख रूप है। उसके कारण भी दुःख रूप और उसका फल भी दुःख रूप होता है। इस दुःखरूपी संसार में जो सुख प्राप्त करना चाहते हो तो धर्म की शरण में जाओ किन्तु धर्म के लिए भी योग्यता चाहिए।

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