Book Title: Guru Vani Part 03
Author(s): Jambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
Publisher: Siddhi Bhuvan Manohar Jain Trust

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Page 258
________________ २३६ परहित-चिन्तक गुरुवाणी-३ करते। प्रतिवर्ष एक करोड़ रुपया जीवदया में खर्च करने लगे। समय बदला मंहगाई बढ़ी किन्तु स्वयं ने परिमाण के अनुसार ३०० रुपये ही रखे। आज तो तुम्हारी एक चप्पल जोड़ी भी ३०० रुपये की होती है। कीर्तिभाई अनेक दुकानों पर जाते थे, मोटे कपड़े की धोती पहनते थे क्योंकि उसे बारह महीने तक चलाना होता था! चप्पल भी चालू ही खरीदते थे। इसमें भी कहीं गए हों और चप्पल चोरी हो जाए तो बारह महीने तक चप्पल के बिना ही चलते थे.... करोड़पति होने पर भी ३०० रुपयों में ही उन्होंने अपना जीवन चलाया। आज चारों तरफ उनका नाम है। उनके एक मात्र पुत्र महेश भाई भणसाली ने तो परोपकार के हेतु विवाह भी नहीं किया। केवल जीवों की सेवा ही उनका लक्ष्य है। उनके जीवन में परोपकार कितना ओतप्रोत हो गया है। सादगी भी कितनी? तुम उनके घर जाओ तो स्वयं चाय बनाकर तुमको पिलाएंगे। घर में कोई नौकर-चाकर नहीं रखते। ऐसी विरल विभूतियों से ही जगत् शोभायमान है और ऐसे परोपकारी मनुष्य ही धर्म के लायक बनते हैं। भले बनो किन्तु भोले न बनो..... उदार बनो किन्तु उड़ाऊ मत बनो. खर्च में कटौती करो किन्तु कृपण न बनो.... सच्चे बनो किन्तु खारे मत बनो.... सत्यग्राही बनो किन्तु सत्याग्रही न बनो.... मरने के बाद आँखें खुली क्यों रहती है? शायद अब भी दुनिया में कुछ देखने का बाकी रह गया है।

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