Book Title: Guru Vani Part 03
Author(s): Jambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
Publisher: Siddhi Bhuvan Manohar Jain Trust

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Page 239
________________ कृतज्ञता २१७ गुरुवाणी-३ ठाणांग सूत्र में भगवान महावीर स्वामी और गौतमस्वामी का संवाद आता है। उसमें भगवान् कहते हैं - हे गौतम! तीन के उपकार का बदला चुकाया नहीं जा सकता:- १. माता-पिता २. पति ३. धर्माचार्य। ___ माता-पिता का उपकार - जिसने हमें जन्म दिया, हमारे पीछे जिसने रात-दिन एक किये, स्वयं भूखे रहकर हमें भोजन कराया। ऐसे माँ-बाप को तो शतपाक अथवा सहस्त्रपाक तेल से मालिश कर सुगन्धित जल से स्नान कराये, समस्त आभूषण पहनाये, और बत्तीस प्रकार के पक्वान और अठारह प्रकार की सब्जी से भोजन कराये और स्वयं के कन्धे पर बिठाकर यात्रा कराये। इतना करने पर भी उनके उपकार का बदला हम नहीं चुका सकते। गौतमस्वामी महाराज पूछते हैं- भगवन् ! तब उनके उपकारों का बदला कैसे चुकाया जा सकता है? भगवान कहते हैं - हे गौतम ! कदाचित् माता-पिता यदि धर्म मार्ग से विमुख हो जाएं तो वह पुत्र उनको धर्म मार्ग की और लाएं तथा उनके परलोक को भी सुधारे तभी उनके उपकार का बदला चुकाया जा सकता है। विनयी पुत्र की आकुलता एक तरफ शास्त्र में माता-पिता के विनय का इतना वर्णन किया और दूसरी तरफ आज इस संसार में माता-पिता कि अत्यधिक करुण स्थिति है। इन दोनों के बीच में आसमान और पाताल का अन्तर है, ऐसा क्यों? उसमें दो कारण हैं । एक तो माता-पिता का स्वभाव भी कारणभूत बन जाता है। अनेक बार माता-पिता ही पुत्र के घर को बरबाद कर देते हैं। पुत्र का उत्साह से विवाह करते हैं। वधू आती है और उस वधू के साथ रोज झगड़ा करते हैं । लड़के के कान भरते हैं कि तेरी बहू ऐसी है, तेरी बहू वैसी है, आदि। अब यदि लड़का विनयी होता है, तो उसके सामने प्रश्न खड़ा हो जाता है। यदि वह स्त्री का पक्ष लेता है तो मातापिता कि भक्ति का प्रश्न आता है और यदि माता-पिता का पक्ष लेता है तो पत्नी को छोड़ना पड़ता है, क्या करूँ? शास्त्रानुसार चला जाए तो रुदन

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