Book Title: Guru Vani Part 03
Author(s): Jambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
Publisher: Siddhi Bhuvan Manohar Jain Trust

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Page 246
________________ २२४ कृतज्ञता गुरुवाणी-३ अर्थात् समकित देने वाले गुरुदेव के उपकार का बदला करोड़ो भवों तक अनेक उपाय करने पर भी नहीं चुका सकते। लेकिन इनके उपकारों का सतत् चिन्तन करें तो ही हम पार उतर सकते हैं । यह धर्म जो टिका हुआ है वह देव और गुरु के बल से ही है। देव और गुरु न होते तो हमारी दशा क्या होती? जानवर से भी हम निम्न कोटि के होते। देव ने मार्ग बताया और गुरु ने वह मार्ग हम तक पहुँचाया। गौतम स्वामी पूछते हैं- हे भगवान् ! तो ऐसे उपकारी धर्माचार्य का बदला हम कैसे चुका सकते हैं। भगवान् कहते हैं- हे गौतम! कदाचित् धर्म गुरु किसी संकट में आ गए हों, किसी अटवी में मार्ग भूल गए हों तब देव बना हुआ शिष्य आकर उनको योग्य स्थान पर छोड़ देता है तो भी उनके उपकार का बदला चुकाने में समक्ष नहीं होता। परन्तु किसी समय में धर्मगुरु स्वयं के मार्ग से चलायमान होने की स्थिति में हों अथवा चलायमान हो गए हों तो उनको वापिस धर्म मार्ग की ओर प्रेरित करना तथा उनको धर्म में स्थिर करने पर ही उनके उपकार का बदला चुका सकते हैं। अनन्त उपकारी षट्काय जीव इन तीनों के अतिरिक्त भी हम सूक्ष्मता से विचार करें तो हमारे ऊपर समस्त जीवसृष्टि का भी उपकार है। छ:काय जीवों के आधार पर ही तुम्हारी गाड़ी चल रही है न! पानी बिना, अग्नि बिना, वायु बिना, पृथ्वी बिना और वनस्पती के बिना तुम क्षण मात्र भी रह सकते हो क्या? छोटे से छोटे जीवों का भी हमारे ऊपर कितना उपकार है और हम उन्हीं जीवों का निर्दयतापूर्वक कत्लेआम करते चले जा रहे हैं। पानी को आवश्यकता से अधिक बेवजह व्यय करते हैं, स्नान करने बैठेंगे तो नल खुला ही छोड़ देते है, फव्वारे खुले.... बिलकुल बेपरवाह। जिस दिन यह धरती माता रुठ जाएगी और मेघराजा रुठ जाएंगे उस दिन क्या होगा? तुम इस प्रकार से उसको बरबाद कर रहे हो। तुम्हारे प्रतिदिन के निःस्वार्थ उपकारी, इन सूक्ष्म जीवों के उपकारों का कब विचार करोगे? आज भी बहुत से विवेकी मनुष्य पृथ्वी, पानी और अग्नि को देव मानते

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