Book Title: Guru Vani Part 03
Author(s): Jambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
Publisher: Siddhi Bhuvan Manohar Jain Trust

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Page 252
________________ २३० परहित-चिन्तक गुरुवाणी-३ परहित चिन्तक धर्म के साथ गुण हों तो वह छोटा सा धर्म भी जीवन में फलीभूत हो जाता है। बीज छोटे से छोटा होता है, पर उस बीज में से वटवृक्ष कितना फैलाव लेता है? भले ही धर्म थोड़ा सा करो, किन्तु वह गुणयुक्त होगा तो वटवृक्ष की भांति विस्तार पाएगा। धर्म के योग्य व्यक्ति का बीसवाँ गुण है परहित चिन्तक।अर्थात् दूसरे के हित का ही विचार करने वाला। पूज्य आनन्दघनजी महाराज कहते हैं -- अवसर बेर-बेर नहीं आवे, ज्युं जाणे त्युं करले भलाई, जनम-जनम सुख पावे...। धर्मी मनुष्य स्वभाव से ही परोपकारी होना चाहिए। कई बार मनुष्य दिखाने के लिए, कई बार आगे आने के लिए और कई बार व्यवहार से मनुष्य भला करता है। पर उससे वह आगे आने की अपेक्षा पीछे ही चला जाता है। शास्त्रकार कहते हैं कि जब भी अवसर मिले उसको शीघ्रता से स्वीकार कर लो। चाहे कोई पक्षी दुःखी हो, कोई पशु दुःखी हो या कोई मनुष्य दुःखी हो तो दिया हुआ या हमारा किया हुआ कभी भी निष्फल नहीं जाता है। किसी को तुमने खिलाया हो, अरे! एक कप चाय पिलाई होगी तो वह भी निष्फल नहीं जायेगी। माण्डल गाँव के जगुभाई के द्वारा वर्णित सत्य घटना उन्हीं के शब्दों में - हमारे यहाँ एक पटेल भोजन करने के लिए आया। उस पटेल के साथ उसका एक मित्र भी था। उनके साथ मेरी किसी प्रकार की जानपहचान नहीं थी, किन्तु पटेल के साथ थे, इसलिए वे भी भोजन के लिए आए। पटेल को मैंने बिना लिखापढ़ी के ५०,०००/- रुपये दिए। थोड़े समय में ही उन्हें वापिस लौटाने थे। कुछ ऐसी घटना हुई कि अचानक ही पटेल की मृत्यु हुई। उस पटेल के सन्तानों में चार लड़कियाँ ही थी। पुत्र एक भी नहीं था। यह धन उधार लेने की घटना किसी को खबर भी नहीं थी केवल साथ में आने वाले मित्रों को ही यह खबर थी। अब धन का बटवारा हुआ, मैं तो उधार दिया हुआ धन वापिस नहीं आएगा ऐसा

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