Book Title: Gunsthan Siddhanta ek Vishleshan
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 4
________________ प्रकाशकीय प्रत्येक धर्म-साधना का मल उद्देश्य व्यक्ति का आध्यात्मिक विकास करना होता है। विभिन्न धर्म-दर्शनों में इस आध्यात्मिक विकास की विभिन्न अवस्थाओं का चित्रण विविध रूपों में मिलता है। इसी क्रम में जैन धर्म-दर्शन में व्यक्ति के आध्यात्मिक विकास की विभिन्न अवस्थाओं का चित्रण गुणस्थान सिद्धान्त के रूप में हआ है। गुणस्थान सिद्धान्त सुस्पष्ट रूप से यह प्रतिपादित करता है कि व्यक्ति अपनी वासनाओं एवं कषायों को क्रमश: क्षीण करता हुआ परमात्मपद को प्राप्त कर सकता है। गुणस्थान सिद्धान्त का प्रतिपादन जैन आचार्यों ने अपने अनेक ग्रन्थों में किया है। मात्र यही नहीं, इस सिद्धान्त को लेकर कुछ स्वतन्त्र ग्रन्थ भी परवर्ती काल में लिखे गए हैं। प्रोफेसर सागरमल जैन ने उन ग्रन्थों का सम्यक् आलोड़न कर इस गुणस्थान सिद्धान्त को सरल और सहज ढंग से प्रस्तुत किया है । इस ग्रन्थ में उन्होंने विस्तारपूर्वक इस सिद्धान्त के उद्भव एवं विकास की भी चर्चा की है। साथ ही यह भी बताया है कि भारतीय दर्शन में इस सिद्धान्त के समतुल्य कौन-कौन सी अवधारणाएँ पाई जाती हैं । इस प्रकार यह कृति गुणस्थान सिद्धान्त को उसके ऐतिहासिक विकासक्रम में तुलनात्मक रूप से प्रस्तुत करती है । हम प्रोफेसर सागरमल जैन के आभारी हैं कि उन्होंने यह कृति हमें प्रकाशनार्थ उपलब्ध कराई। इस कृति का मूल्य और महत्त्व क्या है, यह तो विद्वत् पाठक ही हमें बता सकेंगे। इस सन्दर्भ में हम उनके सुझावों की अपेक्षा रखते हैं। प्रस्तुत कृति के प्रणयन के लिये जहाँ हम प्रोफेसर जैन के आभारी हैं वहीं इसकी प्रूफ-रीडिंग, मुद्रण एवं प्रकाशन सम्बन्धी व्यवस्थाओं के लिये डॉ० श्रीप्रकाश पाण्डय, प्रवक्ता, पार्श्वनाथ विद्यापीठ के भी आभारी हैं। अन्त हम इसकी कम्प्यूटर द्वारा कम्पोजिंग के लिये नया संसार प्रेस, भदैनी एवं छपाई के लिये वर्द्धमान मुद्रणालय, भेलूपुर, वाराणसी के प्रति भी अपना आभार व्यक्त करते हैं जिन्होंने सुन्दर और सत्वर रूप से अपने दायित्वों का निर्वहन किया है। भूपेन्द्रनाथ जैन मानद सचिव, पार्श्वनाथ विद्यापीठ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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